रविवार, 4 अक्तूबर 2015

इतिहास में आज: 4 अक्टूबर

1957 में इसी दिन इंसान ने अंतरिक्ष में पहली छलांग लगाई. सोवियत संघ ने मानव इतिहास का पहला उपग्रह स्पुतनिक सफलता से अंतरिक्ष में पहुंचाया था.
83.5 किलोग्राम भारी स्पुतनिक इंसान की बनाई ऐसी पहली चीज है जो पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर भेजी गई. सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने इस उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के बाद कहा कि स्पुतनिक धरती से 900 किलोमीटर ऊपर है. पृथ्वी की परिक्रमा के दौरान स्पुतनिक की गति 29,000 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. पहला मानव निर्मित उपग्रह 96 मिनट में धरती का एक चक्कर पूरा कर रहा था.
धातु की गेंद की तरह बनाए स्पुतनिक में चार एंटीने थे. प्रक्षेपण के वक्त वैज्ञानिकों को उम्मीद नहीं थी कि स्पुतनिक अंतरिक्ष से रेडियो सिग्नल भेजेगा. वैज्ञानिकों को लगा कि धरती के वायुमंडल से बाहर निकलते वक्त घर्षण की वजह से धातु का खोल गल जाएगा. हालांकि ऐसा हुआ भी, लेकिन इसके बावजूद स्पुतनिक वहां से रेडियो सिग्नल भेजने में कामयाब रहा.
ब्लैक होल की दुनिया
बहुत कुछ पर कुछ नहीं
ब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.

हालांकि इंसानी इतिहास का ये पहला उपग्रह अंतरिक्ष में 22 दिन ही सिग्नल भेज पाया. बैटरी खत्म होने की वजह से 26 अक्टूबर 1957 को स्पुतनिक खामोश हो गया.
आम तौर पर सैटेलाइटों की औसत उम्र पांच से 20 साल के बीच होती है. 2008 तक पूर्वी सोवियत संघ और रूस की करीब 1,400 सैटेलाइटें अंतरिक्ष में है. अमेरिका की करीबन एक हजार, जापान की 100 से ज्यादा, चीन की करीब 80, फ्रांस की 40 और भारत 30 से ज्यादा सैटेलाइटें भी धरती की परिक्रमा कर रही हैं. भारत ने अपनी पहली सैटेलाइट अप्रैल 1971 में छोड़ी. इसका नाम आर्यभट्ट था.
आज करीब 3,000 इंसानी उपग्रह अंतरिक्ष में रहकर धरती का चक्कर काट रहे हैं. इन्हीं की मदद से आज मोबाइल कम्युनिकेशन, टीवी प्रसारण, इंटरनेट, हवाई और समुद्री परिवहन और आपदा प्रबंधन हो रहा है. स्पुतनिक के जरिए इंसान ने वो तकनीक हासिल कर ली, जिसके बिना आज की 21वीं सदी की कल्पना मुश्किल है.



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