शनिवार, 19 सितंबर 2015

👑सम्राट अशोक इतिहास- जीवनी

पूरा नाम     – अशोक बिंदुसार मौर्य.
जन्म          – ईसा पूर्व 294.
जन्मस्थान  – पाटलीपुत्र.
पिता           – राजा बिंदुसार.
माता           – धर्मा / शुभद्रांगी.
विवाह         – देवी, कारुवाकी, असंधीमित्रा, पदमावती, तिष्क रक्षिता.

पाटलिपुत्र के राजा बिंदुसार की मृत्यु के बाद राजगद्दी अशोक के बड़े भाई शुशिम को मिलने वाली थी, लेकिन मंत्रियों ने अशोक को ज्यादा सक्षम पाया, इसलिए उन्होंने अशोक को सत्तासीन होने में मदद की.

उस समय पाटलिपुत्र में अराजकता और मारकाट का वातावरण व्याप्त था. अशोक ने अपने को कुशल प्रशासक सिध्द करते हुए तीन साल के भीतर ही राज्य में शांति स्थापित की और उसके बाद ही ईसा पूर्व 273 में औपचारिक रूप से राजगद्दी संभाली. उसके शासनकाल में देश ने विज्ञान व तकनीक के साथ – साथ चिकित्सा शास्त्र में काफी तरक्की की. उसने धर्म पर इतना जोर दिया कि प्रजा इमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलने लगी. चोरी और लूटपाट की घटानाएं बिलकुल ही बंद हो गईं.

अशोक घोर मानवतावादी था. वह रात – दिन जनता की भलाई के काम ही किया करता था. उसे  विशाल साम्राज्य के किसी भी हिस्से में होने वाली घटना की जानकारी रहती थी. धर्म के प्रति कितनी आस्था थी, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह बिना एक हजार ब्राम्हणों को भोजन कराए स्वयं कुछ नहीं खता था. कलिंग युध्द अशोक के जीवन का पहला और आखरी युध्द था, जिसके उसने जीवन को ही बदल डाला.

अशोक इस छोटे – से किंतु बहुत ही समृध्द राज्य को अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था, लेकिन स्वाभिमानी और बहादुर कलिंगवासी अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना चाहते थे. अंततः अशोक ने कलिंग पर चढ़ाई की और घमासान युध्द शुरु हुआ. इस युध्द में हुए भारी रक्तपात ने उसे हिलाकर रख दिया. उसने सोचा कि यह सब लालच का दुष्परिणाम है और जीवन में फिर कभी युध्द न करने का प्रण लिया. उसने बौध्द धर्म अपना लिया और अहिंसा का पुजारी हो गया. उसने देशभर में बौध्द धर्म के प्रचार के लिए स्तंभों और स्तूपों का निर्माण कराया. विदेशों में बौध्द धर्म के विस्तार के लिए उसने भिक्षुओं की तोलियां भेजीं.

बौध्द धर्म को अशोक ने ही विश्व धर्म के रूप में मान्यता दिलाई. विदेशों में बौध्द धर्म के प्रचार के लिए अशोक ने अपने पुत्र और पुत्री तक को भिक्षु-भिक्षुणी के रूप में भारत से बाहर भेजा. सार्वजानिक कल्याण के लिये उसने जो कार्य किये वे तो इतिहास में अमर ही हो गये हैं.नैतिकता, उदारता एवं भाईचारे का संदेश देने वाले अशोक ने कई अनुपम भवनों तथा देश के कोने-कोने में स्तंभों एवं शिलालेखों का निर्माण भी कराया जिन पर बौध्द धर्म के संदेश अंकित थे. भारत का राष्ट्रीय चिह्न ‘अशोक चक्र’ तथा शेरों की ‘त्रिमूर्ति’ भी अशोक महान की ही दें है. ये कृतियां अशोक निर्मित स्तंभों और स्तूपों पर अंकित हैं. ‘त्रिमूर्ति’ सारनाथ (वाराणसी) के बौध्द स्तूप के स्तंभों पर निर्मित शिलामुर्तियों की प्रतिकृति है.

अशोक भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है, जिसकी तुलना विश्व में किसी से नहीं की जा सकती. एक विजेता, दार्शनिक एवं प्रजापालक शासक के रूप में उसका नाम अमर रहेगा. उसने जो त्याग एवं कार्य किये वैसा अन्य कोई नहीं कर सका.

मृत्यु   –   सम्राट अशोक ने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया. ई. सा पूर्व 232 के आसपास उनकी मृत्यु हुयी. इस महान सम्राट के मृत्यु के बाद मौर्य राजवंश 60 वर्षों के आसपास तक चला.

विश्व इतिहास में अशोक महान एक अतुलनीय चरित्र है. उस जैसा ऐतिहासिक पात्र अन्यत्र दुर्लभ है. भारतीय इतिहास के प्रकाशवान तारे के रूप में वह सदैव जगमगाता रहेगा